आखिर अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदे कैसे,
क्या उन्हें मिले गुरु द्रोण जैसे?
फिर पाण्डवों को क्यों उन सा होने की इच्छा
क्या जन्म होने पर ही मिले शिक्षा??
बच्चे छोटे बस्ते मोटे
भोलेपन को मारती स्वजनों की व्याकुल समीक्षा
जो ऊँचे विद्यालय, महंगे पुस्तकालय होते सब
तो गुरु द्रोण को लेनी पड़ती न एकलव्य की परीक्षा

गुरुकुल गए सियावर मोह त्यागकर
खोयी सिया हिरण के मोह में आकर
क्या सिया को भी गुरुकुल जाना था?
मोह कहें हम इसे जनक का, या मोह बस बहाना था?
कब शाम, दाम, दंड, भेद कर के
कर्ण ने शिक्षा के लिए फिर एक स्वांग रचाया था
काम न आई शिक्षा परशुराम की
द्युत-क्रिड़ा में उसने ना शस्त्र उठाया था।

छूटा गुरुकुल सुभद्रा छूटी
द्रोणाचार्य को साधने दौड़ पड़े अब कान्हा भी
सब दौड़ते, भीड़ चीरते
पर खुद को पाते अकेला ही ।।
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